पार
एगो असंभव जीवन शोक करे खाितर—
हम लोगन कोई राजा के वस्तु बन गइली
जे राजा के हम कभी ना देखब।
सब पानी कारा भइल।
गंगा नदिया समुन्दर तक पहुँचेला—
हर समुन्दर गंगा भइल।
जे जहाज हम चढ़के आइली उही भूतिया है
भूतन दूर िकनारा से याँसों तक आवेला जाइला
आशा या आफ़त से आनजान होवे
बिलक िपयास के तेज चुभन महसूस करत।
हम अगर ड्रेस पहने तू ओकर रंग आंदाज़ा लगा सकबा?
हाँ तू जेकर जीभ डमरा से मीठ भइल।
का? का तू सोचला आपनके ना सहभागी होई?
हम पिहले कहे चुकल हैै
सब पानी कालापानी भइल।
Source: Poetry (September 2025)